• Followers
Ritual Games

भूमिका

यह संसार खेल का सबसे बड़ा मैदान है और मनुष्य खिलाड़ी। मनुष्य का जन्म खेलने के लिए होता है। जब तक जीवित है, खेलता है तथा मृत्यु को पाकर मैदान से बाहर हो जाता है। मनुष्य का बचपन, जवानी और बुढ़ापा तीन अवस्था ही तीन पारी है। तीनो पारी में खेल का चुनाव और आनंद की अनुभूति पृथक-पृथक होती है, यहि कारण है कि मानव उदभव काल से ही लोक जीवन में अनेक खेलों की परम्परा विकसित हुई है जिसे हम लोक खेल, ग्रामीण खेल, प्राचीन खेल या जन-जन का खेल कहते हैं। यह खेल पूर्वजों की अनमोल देन है जिसमे हमारी इतिहास छुपी हुइ है तथा संस्कृति उजागर होती है। ऐसे ही लोक खेलों को जानना तथा लुप्त होने से बचाना हर व्यक्ति का दायित्व है।
चंद्रशेखर चकोर

Ritual Games

परिचय

लोक खेलों का उत्सव उनकी परंपरा एवं सम्यक व्यवस्थापन में ही निरंतर संभव है, समयानुकूल आधुनिकता के झंझावात से प्रभावित लोक खेलों को पुनः अपनी धरती अपने लोगों के मध्य जीवन्तता के साथ उन्नयन करने का संकल्प लिया चंद्रशेखर चकोर ने। छत्तीसगढ़के रायपुर जिलान्तर्गत ग्राम कांदुल मे 9 सितं 1968 को चंद्रशेखर का जन्म हुआ। ग्राम के निश्छल प्राकृतिक वातावरण मे स्वयं को आत्मसात करने वाले चंद्रशेखर चकोर ने आंचलिक एवं परंपरागत किन्तु मौलिक खेलों को व्यवस्थित करने का संकल्प किया। निसंदेह किसी भी खेल के व्यवस्थापन के लिए नियम शर्ते एवं अनुशासन आवश्यक होता है, एतदर्थ 1989 मे नियमन किया और अपने ही ग्राम कांदुल मे 11 जनवरी 1990 को अंचल का पावन किसानी त्यौहार छेरछेरा पुन्नी के अवसर पर गिल्ली डंडा का प्रथम प्रतियोग का आयोजन किया। नवा सुम्मत समिति के संगठनाधीन इस संकल्प आयोजन ने निरंतर गति बनाई। "चकोर" के जीवन का एक अप्रतिम लक्ष्य बना लोक खेलों का संग्रह, प्रतियोगिता एवं खेल शिविरों का आयोजन |

चंद्रशेखर चकोर ने मात्र दस वर्षो के अथक प्रयास से शताधिक लोक खेलों का संकलन किया जिसमे विशेषता, नियम शर्ते, अनुशासन एंव शारीरिक लाभ को समाहित कर "छत्तीसगढ़ के पारंपरिक लोक खेल" के रूप मे पुस्तक 2004 मे प्रकाशित की। निश्चय ही लोक खेलों पर प्रमाणित यह प्रथम पुस्तक है जो अब संदर्भ ग्रंथ के रूप मे लोक मान्यता प्राप्त है। निसंदेह समयानुसार संशोधन पुनरीक्षण से सम्पूरित यह ग्रंथ सभी वर्ग के लिए पठनीय है....

छत्तीसगढ़ के लोक खेल

भूमिका, उत्पत्ति, स्वरूप एंव विकासक्रम

छत्तीसगढ़ की पहचान केवल "धान का कटोरा" के नाम से नहीं है बल्कि बैलाडीला में लोहा, भिलाई का स्टील प्लांट, कोरबा में बिजली, एल्युमिनियम, देवभोग में हीरा, सभ्यता से दूर बस्तर का भू भाग, अपार वन संपदा, सिमेंट कारखाना तथा विविधतापूर्ण लोक संस्कृति से भी है। लोक साहित्य के दृष्टिकोण से शायद ही कोई प्रदेश छत्तीसगढ़ जैसा संपन्न होगा। छत्तीसगढ़ की लोक संस्कृति में जहाँ लोकगीतों, लोकनृत्यों और लोकनाट्यों का वृहत रूप है वहीँ लोक खेलों की विशिष्ट परंपरा भी। यह परंपरा हजारों वर्ष पुरानी नहीं बल्कि इस भू -भाग में मानव उदभव से है। पारंपरिक खेलों के विशाल स्वरूप को देखें तो स्पष्ट होता है कि छत्तीसगढ़ क बाल्यकाल अत्याधिक गौरवान्वित रहा है। सरगुजा से दंतेवाड़ा और डोंगरगढ़ से रायगढ़ तक जहाँ अनेकों पारंपरिक खेल लुप्त हो गये हैं वहीं सैंकड़ों लोक खेल अस्तित्व में आज भी है जो टी.वी., विडियोगेम , इंटरनेट व आधुनिक खेलों के प्रभाव से वंचित दूर- दूर के गांवों में संरक्षित व पल्लवित हो रहे हैं । लोक खेल आज भी उतने ही मनोरंजन का सरल और सशक्त साधन बना हुआ है जितना स्वाधीनता के पूर्व ग्राम्य जीवन में था। मानव उदभव के साथ ही लोक खेलों की परंपरा छत्तीसगढ़ में विकसित हुई है। मानव के आदिम युग से ही लोक खेलों की उत्पत्ति हुई है। व्युत्पत्ति के समय से ही अनेकों प्रकार के लोक खेल अस्तित्व में आये तथा एक स्थान से दूसरे स्थान तक प्रसारित हुए हैं । "झाड़-बेंदरा" को आदिम युग का खेल मान सकते हैं ।

खेल की सम्पूर्ण जानकारी

Gallery

Ritual Games

खेल

खेल के लिए "क्रीड़ा", "प्ले", "स्पोर्ट्स" या फिर "गेम" शब्द का प्रचलन वर्तमान समय में है । खेल एक ऐसी विधा है जिनसे कोई भी मानव समाज या राष्ट्र अछूता नहीं हैं, क्योंकि किसी भी राष्ट्र या अंचल में मनोरंजन का प्रमुख व सशक्त साधन कोई है तो वह है 'खेल'। प्रत्येक मौसम में हर एक पल अनेकों खेल सहज ही मनोरंजन हेतु उपलब्ध हो जाते हैं । मनोरंजन की अनुभूति हेतु विशेष आडम्बर या पूर्व तैयारी की आवश्यकता नहीं होती। खेल किसी भी समुदाय या पृष्ठभूमि पर दो या दो से अधिक व्यक्तियों द्वारा मनोरंजन हेतु किया गया व्यवहार मात्र है। खेल केवल मानव समाज में ही नहीं, अपितु पशु पक्षियों और छोटे जीव जन्तुओं में भी प्रचलित है, जैसे कबूतरों की उड़ान ,कुत्तों का गात खेलना, नर मादा के मध्य प्रणय लीला के अवसर में .....।

मनव के लिए खेल उतना ही महत्वपूर्ण एवं अनिवार्य है जितना भोजन और शिक्षा, जो मानव जितना अधिक खेलता है उनका शारीरिक व मानसिक विकास उतना ही अधिक होता है। जीवन में परिस्थिति के अनुकूल संघर्ष करने की प्रवृति, स्फूर्ति, लक्ष्य प्राप्ति हेतु इच्छाओं में दृढ़ता व असफलता को सहज ही स्वीकार कर लेने की क्षमता बढ़ जाती है। कहा जाय तो शारीरिक व मानसिक विकास के लिए खेल एक तरह की औषधि है। खेल से मनुष्य की व्यायाम, योग व कसरत की आवश्यकता की पूर्ति हो जाती है। किसी भी राष्ट्र या अंचल में अनेक प्रकार के खेल प्रचलित है, जो गांव की किसी चैपाल से लेकर अन्तराष्ट्रीय स्तर तक विद्यमान है। "क्रीड़ा" या "स्पोर्ट्स" की संज्ञा से सम्बोधित होने वाले उक्त खेलों के दो रूप् मानव समाज मे प्रचलित है-

Read More