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Ritual Games

खेल की सम्पूर्ण जानकारी

गीत प्रधान लोक खेल

 खेल गीतों के लिए लोक खेलों की परम्परा में 'गीतिक लोक खेल' शब्द की संज्ञा दी गयी है जिसके विषय में पूर्ण वर्णन, पूर्व में दिया जा चुका है।
छत्तीसगढ़ लोक खेलों का प्रदेश है । सैकड़ों लोक खेलों की परम्परा यहाँ विकसित हुई है वहीं अन्य क्षेत्रों से आये लोक खेलों को भी सहज ही स्वीकारा गया है फलतः पारम्परिक खेलों का स्वरुप यहाँ वृहत हो गया है।छत्तीसगढ़ प्रदेश में गीतिक लोक खेलों की परम्परा व्यापक है। इसके अनेक रूप मिलते हैं। अधिकाधिक गीतिक लोक खेलों का स्वरुप सामूहिक है।खेल के गीतों में मानवीय संवेदनाओ का अदभुत दर्शन होता है। कहीं कहीं पर मानव की भावनाओं को संप्रेषित करने का माध्यम सा आभास होता है। इस बात से नाकारा नहीं जा सकता कि खेल गीत लोक का सुनिश्चित वरदान है जो बार-बार मानव को नवीन या पृथक रूप में प्राप्त नहीं होगा।खेल ही गीत है गीत ही खेल, उन खेलों के लिए कहा जा सकता है जिनमे प्रचलित गीत को खेल से अलग नहीं किया जा सकता । ऐसे खेल गीत है -पोसम-पा,घांदी - मुंदी ,इल्लर-डिल्लर,अटकन-मटकन। छत्तीसगढ़ में ऐसे खेल मिलते हैं जिनका गीत से सीधा सम्बन्ध नहीं होता है।सम्बन्ध होता है तो मात्र भावो से। इस श्रेणी के खेलों से गीत को पृथक करके भी मनोरंजन प्राप्त किया जा सकता है अर्थात गीत के बिना भी खेल संभव है। ऐसे खेल हैं- फुगड़ी ,भौंरा,खुडुवा। गीतिक लोक खेल में कुछ ऐसे भी खेल हैं जिसके गीत में लय की प्रधानता नहीं होती है।गीत का उच्चारण संवाद की तरह होता है। इस संवाद में लय के लक्षण कहीं-कहीं पर मिलते हैं।

ऐसे खेल हैं - डंडी - पौहा, इल्लर-डिल्लर, जांवर-जीयर तथा दार - भात।

छत्तीसगढ़ में प्रचलित खेलगीत
१. अजला-बजला ,२. चुन-चुन मलिया,३. अटकन-मटकन,४. गोल-गोल रानी, ५.घांदी - मुंदी, ६. पोसम-पा, ७. खुडुवा, ८. नख्खी,९. कोबी,१०. चिकि-चिकि बाम्बे ,११.फुगडी, १२. डंडी - पौहा, १३. इल्लर-डिल्ल्लर, १४.जांवर-जीयर, १५. दार - भात, १६. झुलना, १७. भौंरा, १८. पच्चीसा

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