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Ritual Games

Khel Gallery

मंझम

 छत्तीसगढ़ के ग्राम्य-गुड़ी में मंझम नामक गोटी से संबंधित लोक खेल की परम्परा विकसित हुई है । एकल लोक खेलों की श्रृंखला में सम्मिलित इस खेल में सामग्री के नाम पर मात्र सोलह गोटी होते हैं । यह गोटी से संबंधित मारने की प्रक्रिया से परिपूर्ण लोक खेल है । उसके बाद भी नौगाटिया व अठ्टारह गोटिया खेल की तरह लाकप्रिय नहीं हुए हैं संभवतः कारण यह है कि जो व्यक्ति एक बार इस खेल को पूर्ण रूप् से खेलने में सफल हो जाता है वह बार बार खेलने में रूचि नहीं रखता क्यूंकि खेल की प्रक्रिया में सफलता के लिए मात्र एक नियम निर्मित है ।

मारने की प्रक्रिया-

सीधा, आड़ा या तिरछा एक क्रम में तीन घर। प्रथम व द्वितीय घर में गोटी तथा तीसरा घर खाली है तो प्रथम घर की गोटी को एक घर लांघकर अर्थात तीसरे घर में रखना ही दुसरे घर की गोटी को मारना है । लांघने की प्रक्रिया एक घर की होती है वह भी तीसरा घर खाली हो तो ।
मंझम लोक खेल के प्रेमी विशिष्ट स्थान का चुनाव नही करता है । चबूतरे पर हो तो खड्डा, चाक या कोयला से खेल का वृत्ताकार ग्राफ बना लेता है । यदि धूल युक्त स्थल हो तो लकड़ी से खरोच कर ग्राफ का निर्माण कर लेता है ।

वृत्ताकार चित्र में सत्रह घर है । सोलह घर में गोटी होती है । मध्यघर खाली होती है। यह खेल एक व्यक्ति द्वारा खेला जाता है । व्यक्ति मध्य घर के आधार पर किसी भी एक तरफ से गोटी मारना प्रारंभ करता है । एक-एक कर के पन्द्रह गोटी को मार लेने पर खेल समाप्त होता है । यहां पर ध्यान रखा जाता है कि अंत में जो सोलहवां गोटी बचता है वह मध्य घर में पहुंचे । अंतिम गोटी का मध्य घर में पहुचना ही मंझम कहलाता है । ऐसा न हो तो उस व्यक्ति को असफल माना जाता है । खेल फिर से प्रारंभ किया जाता है । यदि खेलने वालों की संख्या एक से अधिक है तो प्रत्येक खिलाड़ी क्रमवार खेलकर मध्य घर तक पहुँचने का प्रयास करता है । बार-बार प्रयास करने से खिलाड़ी सफल हो जाता है ।2. डोकरा -डोकरी
बच्चों ने जब भी सामूहिक रूप से खेल कूद में मनोरंजन की तलाश की तब उसमें ऐसे लोक खेलों के अनेक स्वरूप विकसित हुए जिनमें छू छुवउल की प्रक्रिया प्रचलित रहे हैं । ऐसा ही गीतिक लोक खेलों की श्रेणी में सम्मिलित डोकरी-डोकरा का खेल है ।

डोकरी-डोकरा के खेल में बच्चे का कम से कम तीन होना अनिवार्य होता है । सामग्री के नाम से एक डंडा ले लिया जाता है । स्थितिगत डंडा उपस्थित न हो तो भी यह खेल सरलता से खेल लिया जाता है । इस खेल के प्रतिभागी नाबालिक होते हैं और यह खेल अधिकतर घर के अंदर खेला जाता है

डोकरी-डोकरा का खेल अभिनय के लिए बच्चों को प्ररित करता है क्योंकि जो बच्चा डोकरी या डोकरा बनता है वह बूढ़े व्यक्ति जैसा भाव व्यक्त करता है परिणाम स्वरूप अभिनय के लिए प्रोत्साहित होते हैं ।

खेल का प्रारंभ फत्ता से होता है । फत्ता में असफल बच्चा यदि लड़की हो तो डोकरी और लड़का हो तो डोकरा बनता है । बूढ़े व्यक्ति जैसा चलता है । शेष बच्चे पूछते हैं - कती जाथस डोकरी ? (लड़का हो तो डोकरा)


बूढ़ी बनी है वो कहती है - मउहा बिने बर
शेष बच्चे - महू ल लेगबे का
बूढ़ी - तोर दाई ददा ल पूछ
शेष बच्चे - दाई वो दाई: हमन मउहा बिने बर जाबो - ( दूसरे तरफ को देखकर पूछते है फिर पलटते है) पूछ डरेन डोकरी
डोकरी - झन जा रे वोती कोलिहा हे
शेष - कोलिहा ल मार देबो
डोकरी - वोती हुर्रा हे
शेष - हुर्रा ल कचार देबो
डोकरी - वोती रेड़वा हे
शेष - रेड़वा ल रेड़ देबो
डोकरी - चल भागव रे
शेष - डोकरी के मूड़ म कउंवा चीरक दिस
डोकरी के मूड़ म........
उपर उल्लेखित वाक्य को बार-बार बोलकर चिढ़ाते हैं। बूढ़ी बना बच्चा दौड़ता है । शेष बच्चे इधर-उधर भागते हैं। एक के बाद एक सभी बच्चों को छू लेता है । जो बच्चा सभी से पहले छूवाया था वह बूढ़े का चरित्र निभाता है । खेल पूर्व की तरह फिर से खेला जाता है ।

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