• Followers
Ritual Games

खेल की सम्पूर्ण जानकारी

गोटा से संबंधित लोक खेल

 गोटा या पत्थर के छोटे छोटे टुकड़ों (लगभग आठ दस ग्राम का) से खेले जाने वाले खेलों को "गोटा" का खेल कहा जाता है। उक्त खेल गिट्टी से भी खेला जा सकता है। वर्तमान समय में गिट्टी का उपयोग अत्यधिक हो रहा है क्योंकि यह सरलता से उपलब्ध हो जाती है। इस खेल की परम्परा हजारों वर्ष पुरानी है । छत्तीसगढ़ प्रदेश में भादो माह की कृष्णपक्ष में तीजा-पोरा का त्यौहार मनाया जाता है। इस त्यौहार का यहां विषेश महत्व है। विवाहित महिलाओं को इस त्यौहार में उनके मायके वाले ले जाते हैं। माना जाता है कि पति के लिए विवाहित महिला उपवास रखती है किन्तु छत्तीसगढ़ में विधवा महिला द्वारा किये जाने वाले इस व्रत को देखकर कहा जाता है कि मायके पक्ष की सुख-समृद्धि के लिए महिलाएं तीजा उपवास करती हैं। यहां की महिलाएं कहती है - तीजा जीयत-मरत के उपास ये । इस दिन मनोरंजन का प्रमुख साधन गोटा का खेल होता है। इस खेल का प्रचलन अन्य क्षेत्र व प्रांत में भी मिलता है किन्तु उदभव के संबंध में लिखित उल्लेख अप्राप्त है। सम्भवतः परिश्रम पश्चात् थकान मिटाने बैठी महिलाएं अपने आस-पास पड़े हुए गोटों को छेड़ा होगा और उसमें मनोरंजन की संभावना परिलक्षित हो गयी होगी। ऐसा स्पष्ट होता है कि इसकी उत्पत्ति स्वाभाविक रूप से हुई है किन्तु रूप निर्धारण में किसी मनीषी का योगदान रहा है। कोई भी एक हाथ से एक गोटा को आकाश की ओर फेंककर, जमीन पर पड़े हुए एक या एक से अधिक गोटा को उसी हाथ से बीनकर फेंका हुआ गोटा को ऊपर ही ऊपर पकड़ लेना गोटा की प्रक्रिया है। आकाश की ओर फेंका गया गोटा "चुम्मुल" कहलाता है।गोटा नारी प्रधान खेल है। अबोध बालिका से लेकर विवाहिता तक इस खेल को उत्साहपूर्वक खेलते हैं। नारी लोक खेलों में गोटा ही मात्र ऐसा खेल है जिसमें वृद्ध महिलाएं भी मनोरंजन कर लेती है। सभी वर्गों द्वारा खेले जाने के कारण नारी खेलों में गोटा का विषेष महत्व है और महिला वर्ग में सबसे अधिक लोक प्रिय । इस खेल से अशिक्षित महिलावर्ग को गिनती का ज्ञान हो जाता है, जो महत्व का विषय है ।

दुच्छ लोक खेलों की श्रेणी में आने वाली गोटा खेल के लिए किसी तरह के मैदान की आवश्यकता नहीं होती । इसके खिलाड़ी किसी भी चबुतरा, आंगन, बरामदा या बंद कमरे में भी सहज रूप से खेल लिया करती हैं। एक से अधिक खिलाड़ी साथ साथ खेलते हैं फिर भी यह व्यक्तिगत अर्थात एकल लोक खेल कहलाता है, क्योंकि इसके खिलाड़ी क्रमवार खेलती हैं एक साथ नहीं। फत्ता या पुकाने की प्रक्रिया गोटा के खेलों में प्रचलित नहीं है। किन्तु प्रारंभ करने को लेकर उठने वाली विवाद की स्थिति में फत्ता कर लिया जाता है। गोटा खेलों की महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि इसे एक ही स्थान पर बैठ कर खेला जाता है वह भी मात्र हाथों से । इसमें जीतने के लिए हाथों की फुर्ती ओर नजर का तेज होना अनिवार्य होता है उतना ही अधिक समय भी महत्वपूर्ण होता है क्योंकि चुम्मुल के गिरने से पहले गोटा को बीनना पड़ता है। इसे समय, हाथ और आंखों का संयुक्त खेल कहा जा सकता है। गोटा सामग्री प्रधान खेल है । गोटा के बिना उक्त खेलों की कल्पना नहीं की जा सकती । झेलार दाम की आनंद से परिपूर्ण इन खेलों में लक्ष्य भी होता है। जिसकी प्राप्ति ही खेल है ।

छत्तीसगढ़ी लोक खेलों की विशाल स्वरूप में गोटा वह खेल है जिसे खेल की अपेक्षा कौशल कहना अत्याधिक सार्थक और सशक्त होगा।

यहां इसके दो रूप प्रचलन में है जो इस तरह से है ।

1. आठी 2. सतगोटिया

>>> Back <<<