• Followers
Ritual Games

खेल की सम्पूर्ण जानकारी

गेंद से संबंधित लोक खेल

लोक खेलों की परम्परा कई हजार वर्ष पुरानी है इस बात का प्रमाण महाभारत में मिलता है। महाभारत काल में जहां शकुनी चौसर खेला करता था वहीं भगवान श्रीकृष्ण द्वारा कंचा, गेंद, डंडा-पचरंगा खेलने का उल्लेख मिलता है। भगवान श्रीकृष्ण का बालपन ग्रामीण बालकों की तरह व्यतीत हुआ है। बालपन में न जाने कितने लोक खेलों को खेला होगा जिसका महत्वपूर्ण घटनाओं से संबंध न होने के कारण उल्लेख नहीं हुआ। उल्लेखित लोक खेलों में 'गेंद' का स्थान सर्वोच्च है । गेंद का आड़ लेकर भले ही जमुना में नाग नाथ दिये थे किन्तु वर्तमान युग के लिए वह वरदान सिद्ध हुआ। वर्तमान समय में प्रचलित अनेकानेक खेलों का जन्मदाता गेंद ही है। गेंद जिसे 'बाल' और छत्तीसगढ़ के ग्राम्य जीवन मे 'पूक' कहा जाता है। कृष्णकाल में गेंद से कितने खेलों का अस्तित्व स्थापित हुआ कहा नहीं जा सकता । सम्भवतः गेंद को पैर से खेला गया तब 'फुटबाल' की कल्पना कर ली गई ।

 

हाथ से हवा में उछालने की कल्पना की गई तो 'बालीबाल' और 'हैंडबाल' का स्वरूप बन गया। इसी तरह जब गेंद को लकड़ी से खेला गया तब 'हाकी', 'क्रिकेट' व 'गोल्फ' का स्वरूप विकसित हो गया। कोई भी खेल का वर्तमान स्वरूप लोक खेलों से प्रेरित है और गेंद से संबंधित अनेकों लोक खेल भारत की संस्कृति में प्रचलित है ।
यहां प्रश्न उठता है कि अतीत में जब कम्पनियां नहीं हुआ करती थी तब गेंद कैसे उपलब्ध होती रही होगी । यथार्थ में लोक खेलों के प्रेमियों ने अवाश्यकतानुसार गेंद को जन्म दिया है। वे पुराने कपड़ो को लपेटकर रस्सी से बांध देते थे। पुराने कपड़ो से बना गट्ठा ही गेंद के रूप में काम आ जाता था। गेंद से संबंधित कितने लोक खेल भारत की विभिन्न प्रदेश व अंचल में विकसित हुए होंगे और कितने लुप्त हो गये इसका वर्णन कहीं नहीं मिलता। छत्तीसगढ़ प्रदेश की लोक संस्कृति में मात्र दो खेल हैं जो गेंद पर ही निर्भर है -
1. गिदी गादा
2. पिट्टूल 

>>> Back <<<