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Ritual Games

खेल की सम्पूर्ण जानकारी

गुंढुली से संबंधित

वृत्ताकार किसी वास्तु के ढुलने की प्रवृत्ति से ही 'गुंढुली ' लोक खेल अस्तित्व में आया I आज भी गाँव की गलियों में बच्चों को खेलते हुए कभी भी देखा जा सकता है I सैंकड़ों हजारों वर्षों से चली आ रही लोक खेलों में से गुंढुली भी एक है I गुंढुली एक तरह से नहीं खेला जाता I ग्रामीण व शहरीय जीवन में इसके कई रूप देखने को मिलते है I यह खेल सामग्री प्रधान है I इसके लिए सड़क ही उत्तम स्थान होता है क्योंकि गुंढुली खेलते हुए दूर तक जाना पड़ता है I

वर्तमान में प्रचलित गुंढुली को देख कर यह अनुमान लगता है की अतीत में इनका कोई और रूप प्रचलन में रहा होगा जो समय के साथ लुप्त हो चुका है I

गुंढुली एक सामग्री है जिसका रूप भिन्न -भिन्न होता है उसी तरह उन्हें खेलने का नियम या साधन भी भिन्न - भिन्न होते हैं I

 

१. सायकल की प्रचलन से ही दो तरह की गुंढुली अस्तित्व में आ गया I दोनों का सम्बन्ध पहिये से है I एक पहिये का रिंग व दूसरा उसमें लगने वाला टायर I सायकल के पहिये से जुदा दोनों ही सामग्री पुराना व व्यर्थ हो जाने के बाद खेल के लिए उपयोगी हो जाता है I टायर नरम होता है जो रबर से निर्मित होता है I इसे चलाने के लिए लकड़ी की आवश्यकता होती है I लकड़ी की लम्बाई अधिकतम एक फुट होती है I जो चित्र में दिखाया गया है I पहिये का टायर को लकड़ी से ठोकर मारकर आगे बढाया जाता है I टायर वृत्ताकार होता है इसलिए ढुलता जाता है I लकड़ी से ठोकर मारकर दांये या बांये दिशा में मोड़ा भी जाता है।

रिंग चादर से बना होने के कारण ठोस होता है I इसे भी चलाने के लिए एक फुट लम्बी लकड़ी की आवश्यकता होती है किन्तु ढुलाने की प्रक्रिया टायर से भिन्न होती है I चित्रानुसार रिंग के वृत्ताकार हिस्से में गड्ढा होता है जो टायर व ट्यूब लगाने के लिए बनाया गया होता है I खिलाडी उसी गड्ढे पर लकड़ी को खड़ा रखता है I लकड़ी का दूसरा सिरा निचे की ओर होता है I इस स्थिति में लकड़ी से बल लगाकर रिंग को आगे की ओर ढुलाया जाता है I

2. बोरिंग होने की शुरुआत के साथ उक्त गुंढुली का प्रचलन हो गया क्योंकि इसमें जो गोलाकार पत्थर लिया गया है वह बोरिंग खोदने पर जमीं के अन्दर से निकलता है I इस गुंढुली को चलाने की प्रक्रिया अन्य गुंढुली से पृथक है I यह कहा जाय की इसे बल लगाकर किसी साधन से आगे बढ़ाने के बजाय खिंच कर चलाया जाता है I 

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