• Followers
Ritual Games

खेल की सम्पूर्ण जानकारी

बांटी से संबंधित लोक खेल

 भारतीय लोक खेलों की समृद्ध परंपरा में "बांटी" लोक खेल की स्वरूप समृद्ध है। बांटी दो प्रकार की होती है। एक वह जो कांच से बना होती है जिसे "कंचा या कच्ची बांटी" कहते हैं। दूसरा रेत सीमेंट से निर्मित रहती है जिसे "रेम या पक्की बांटी" कहते हैं। ग्रामीण दोनों को ही बांटी कहते हैं और बांटी शब्द ही प्रचलन में अत्याधिक है। शहरी क्षेत्र में बांटी के लिए " गोली" शब्द का संबोधन किया जाता है । सरगुजा क्षेत्र में इसे 'आन्टा' कहा जाता है ।
बांटी का आकार, कंचा हो या रेम गोल होता है किन्तु दोनों में एक दूसरे का आकार भिन्न होता है। कंचा बांटी छोटा होता है और रेम लगभग उससे दोगुना बड़ा होता है। रेम की अपेक्षा कंचा में आकर्षण अत्याधिक होता है कारण कि कंचा के अंदर रंगों का उपयोग किया होता है। कंचा और रेम का वजन लगभग पांच से पन्द्रह ग्राम तक होता है । दोनों तरह की बांटी बाजार में हमेशा उपलब्ध होती हैं। आर्थिक पक्ष के रूप से बांटी की बिक्री उल्लेखनीय है ।

 

हिन्दुस्तान के प्रत्येक प्रान्तों में इसका प्रचलन मिलता है। स्वरूप पृथक-पृथक हो या समान हो इसे एक क्षेत्र का खेल नहीं कहा जा सकता है । छत्तीसगढ़ प्रदेश में बांटी का विविधतापूर्ण स्वरूप मिलता है। ऋतु कोई भी हो यह खेल सरलतापूर्वक खेला जा सकता है। मूल रूप से बांटी वर्षा ऋतु का खेल है। पानी और कीचड़ के कारण इस ऋतु में अनेक लोक खेलों से ग्रामीण वंचित रह जाते हैं । किन्तु बांटी वह सामग्री है जिसे सदैव ही पेंट या शर्ट की जेब में रखा जा सकता है । वर्षा ऋतु में ऐसा ही होता है। जहां पर भी थोड़ा सा समतल और सूखा स्थान मिल जाता है। वहां पर बांटी का खेल प्रारम्भ कर दिया जाता है। खिलाड़ियों की संख्या चार- पांच हो तो देर तक इस खेल का आनंद उठाया जा सकता है । खिलाड़ी बांटी का खेल जमीन पर उकरूं बैठकर ही खेलता है । जमीन पर बैठकर खेले जाने वाला खेल गोटा के सदृश्य बांटी भी हाथ और नजर पर केंद्रित होता है। इस खेल के लिए खिलाड़ियों में निशाना साधने की क्षमता अनिवार्य होती है वहीं उंगलियों का कुशल संचालन भी होता है। बांटी वर्षा ऋतु का खेल है। वर्षा ऋतु में गाय और भैंस की पूंछ के बालों पर मिट्टी चिपक जाती है। चिपका हुआ मिट्टी कुछ दिनों बाद बांटी की भांति गोल हो जाता है । मिट्टी का यह आकार बाल से निकलता नहीं है इसीलिए बाल को काट दिया जाता है । सम्भवत: मिट्टी के इस आकार से ही बांटी लोक खेल का उदभव मानव जीवन में हुआ होगा। बांटी लोक खेल का उदभव कब व कहां हुआ ये प्रश्न हो सकता है किन्तु इसकी परंपरा कई हजार वर्ष पुरानी है इस बात का प्रमाण महाभारत काल में है। भगवान श्री कृष्ण ने जब गज रूपी राक्षस का वध किया तब उक्त हथियार बांटी ही था ।

बांटी पुरूष खेलों में से एक है। अन्य पुरूष खेल गिल्ली व भौंरा के समकक्ष इसका नाम उल्लेखित किया जा सकता है । छत्तीसगढ़ प्रदेश में बांटी से संबंधित अनेकों लोक खेल मिलते हैं । सभी लोक खेलों को दो भागों में रखा जा सकता है ।

1. समूहिक लोक खेलों का स्वरूप लिये हुये बांटी के खेल -
1- कच्ची-पक्की 2- दस-बीस 3- पंचडुबिया
2. दलीय लोक खेलों का स्वरूप लिए हुए बांटी के खेल-
1- घेरा बांटी 2- कोत-कोत

बांटी से संबंधित इन खेलों का वर्णन करने से पूर्व जानना अनिवार्य है बांटी मारने की प्रक्रिया-एक हाथ का अंगूठा, तर्जनी व मध्यमा उंगली से बांटी को ऐसा पकड़ा जाता है मानों भुईयां पर रखना चाहता हो । दूसरे हाथ के अंगूठे को भुईयां पर रखकर मध्यमा या तर्जनी उंगली से बांटी को सामने की ओर इस तरह फेंक दिया जाता है कि वह तीव्र गति से लक्ष्य पर पहुंचे। लक्ष्य अन्य खिलाड़ियों का बांटी होता है उक्त खेल में । इसके खिलाड़ी कम उम्र से ही बड़ों के खेल की अनुकरण करते हुए बांटी मारना सीख जाते हैं। बांटी मार लेना कौशल है। कोई कोई इतना अधिक पारंगत हो जाते हैं कि दस से पन्द्रह फूट दूर बांटी को मार (टीप) लेते हैं। यह मार कभी कभी इतना तेज होता है कि जिस बांटी को मारा गया है वह दो टुकड़ों में विभक्त हो जाती है।

बांटी से संबंधित प्रमुख शब्द - डुबुल, डुबाना, चोट, टीप, भुईयां, कच्ची, पक्की, मारना, मुरहा, पींद, कोत-कोत, बेंदा, सड़

>>> Back <<<