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Ritual Games

खेल की सम्पूर्ण जानकारी

विभिन्न ऋतुओं से संबंधित लोक खेल

छत्तीसगढ़ का अधिकांश क्षेत्र वन संपदा से घिरा हुआ है जहां के निवासी रोटी के लिए और बिमारी से जूझते रहे हैं। छत्तीसगढ़ के मैदानी क्षेत्रों में कृषि की प्रधानता है। वनवासी की भांति मैदानी क्षेत्र के रहवासी भी आभाव पूर्ण जीवन यापन करते रहे हैं। यहाँ के ग्रामीण आर्थिक रूप से कभी भी आत्मनिर्भर न हो सके । ग्रामीणजन, मालगुजार, गौंटिया या दाऊ के आधीन रहे हैं जहाँ भूमिहार (भूमिहीन) और छोटे कृषक मालगुजारों, गौटिया और दाऊ की सेवा में उलझे रहे वहीँ मंडल वर्ग ( ५ से १५ एकड़ का कृषक ) जीवन यापन हेतु अपने खेतों में डटे रहे हैं। कृषक व भूमिहार जहाँ अर्थसंग्रह में असफल रहते थे वहीं शिक्षा से वंचित थे। ऐसे ही परिवार के बच्चे अल्पायु से मेहनत -मशक्कत में लग जाते थे। बड़े बुजुर्ग सूर्य का दर्शन खेत-खलिहान में करते थे और घर की वापसी सूर्यास्त के पश्चात् । यही कारण है कि अल्पायु के बच्चे गाँव-गुड़ी में खेला करते थे या बड़े बुजुर्ग के साथ खेत खलिहान में। अधिकाधिक ऐसे लोक खेलों की परम्परा विकसित हुई है जो गाँव-गुड़ी या खेत - खलिहान के आसपास सरलता से खेले जा सकें ।

 

बच्चे सुबह से संध्या तक एक ही खेल को खेलते नहीं बल्कि समय परिवर्तन , सामग्री की उपस्तिथि व खिलाड़ियों की मानसिकतानुसार खेलों का चुनाव कर लेते हैं।
लोक खेलों की समृद्ध परम्परा में मौसम का भी प्रभाव रहा है । मौसम परिवर्तन के साथ ही खेलों के चुनाव में भी परिवर्तन हो जाता है। सैकड़ों हजारों वर्ष पूर्व ही ऐसे खेल मानव-जीवन में आ चुके थे जिन्हें एक ही ऋतु में खेलना संभव होता है। ऋतु के बदलने के साथ ऐसे खेलों को भुला दिया जाता है। मौसम से संबंधित प्रमुख लोक खेलों को निम्नांकित बिन्दुओं में रखा जा सकता है -

वर्षा ऋतु से संबंधित प्रमुख लोक खेल
वर्षा ऋतु में पानी के कारण मैंदान खेलने योग्य नहीं रह जाता है । गाँव की गली में कीचड़ जमा हो जाता है या पानी भर जाता है। बच्चे तो केवल खेलना चाहते हैं, पानी या कीचड़ के कारण चुप बैठा नहीं जा सकता। खेलने की चाह और उसकी पूर्ति से अनेक ऐसे लोक खेलों का उदभव लोक संस्कृति में हो गया जिन खेलों के लिए पानी या कीचड़ अड़चन न होकर साधन हो गए हैं। ऐसे भी लोक खेलों की परम्परा विकसित हुई है जिसे घर के अन्दर या चबूतरे में खेला जा सकता है । प्रमुख लोक खेल - १, गेंड़ी , २, कूचि, ३, खिलामार, ४, कोंटुल, ५,घरघुन्दिया, ६. फोदा, ७. फल्ली ,८. बांटी.

शीत ऋतु से संबंधित प्रमुख लोक खेल

छत्तीसगढ़ प्रदेश के ग्रामीण जीवन में, शीत ऋतु का समय उत्साह और उत्सव का होता है। यह समय धान की फसल की कटाई और मिंजाई का होता है। इस ऋतु में ठण्ड अधिक पड़ती है इसलिए बच्चे आग या धुप वाले स्थान पर एकत्रित होकर खेलते हैं। यहाँ की लोक संस्कृति में ऐसे बहुत से लोक खेलों का प्रचलन मिलता है जो शीत ऋतु में ही खेले जाते हैं। खेल का संबंध शीत या ठण्ड से नहीं होता किन्तु उसका प्रभाव बच्चों के शरीर और मन पर पड़ता है। प्रमुख लोक खेल :-
१. उलानबांटी, २. रस्सी कूद, ३.अल्लग कूद,

४. भौंरा, ५. गिदिगादा, ६. संडउवा, ७. चूड़ी लुकउल.

ग्रीष्म ऋतु से संबंधित प्रमुख लोक खेल

ग्रीष्म ऋतु में धूप तेज होती है और हवा गर्म हो जाती है। इस मौसम में छत्तीसगढ़ के ग्रामीण जन खेत खलिहान के कार्यों को विराम देकर विवाहोत्सव में भाग लेते हैं। बच्चों के लिए यह मौसम मात्र खेलने के लिए होता है। धूप तेज होने के कारण पानी से संबंधित पनबुड़ी ,चित्तातउर तथा छू - छुवउल खेल प्रतिदिन का अनिवार्य हो जाता है। मैदानी खेलों का प्रचलन बढ़ जाता है जिनमें गिल्ली-डंडा प्रमुख है। इस ऋतु में बच्चे देर रात तक गाँव की गली-गुड़ी में लोक खेलों का आनंद उठाते हैं। बीरो और अंधियारी-अंजोरी का खेल प्रायः खेलते हुए देखने को मिल जाता है। पानालरी और फिलफिली के लिए भी उत्तम समय ग्रीष्म होता है।

प्रमुख लोक खेल
१. भिर्री, २. पखरातूक , ३. गोटा, ४. गिल्ली- डंडा,

५. पच्चीसा, ६. चुहउल, ७. चूड़ी बिनउल. 

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