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Ritual Games

खेल की सम्पूर्ण जानकारी

चुडी से संबंधित लोक खेल

 भारतीय संस्कृति में चूड़ी का धार्मिक महत्व है। चूड़ी के पीछे पवित्र मान्यता है। महिलाओं की कलाईयों में कांच की चूड़ियां मात्र सौंदर्य ही नहीं सुहाग का प्रतीक होती है। अनमोल संपत्ति होती है। ग्रामीण जीवन में आज भी कांच की काली चूड़ियां, दैवी प्रकोप व जादू टोटका से बचाने वाली साधन की तरह मान्य है।
चूड़ी की खनक किसी के लिए संगीत का, किसी के लिए गीत का आधार और किसी के लिए सौभाग्य होती है। किन्तु टूट जाने के बाद वह इस तरह से फेंक दिया जाता है जैसे दूर दूर तक कोई संबंध न हो। ग्रामीण बच्चों ने उसी टूटे हुए चूड़ियों को इकट्ठा किया और खेल सामग्री बना दिया। परिणाम स्वरूप चूड़ी पर केन्द्रित दो तरह की खेल, परम्परा में प्रचलित हो गये

 

1. चूड़ी बिनउल 2. चूड़ी लुकउल
चूड़ी से संबंधित दोनों लोक खेल नारी प्रधान है अर्थात नारी खेलों की श्रृंखला में आती है। यहां "चूड़ी" से तात्पर्य है चूड़ी के छोटे-छोटे टुकड़े । दोनों खेल का पृथक पृथक अस्तित्व तो है साथ ही स्पर्धा की लक्षण भी इनमें समाहित है। चूड़ी से संबंधित लोक खेलों की प्रमुख विशेषता यह भी है कि इसके लिए न विशाल मैदान की आवश्यकता होती है और न ही आर्थिक नुकसान पहुचाने वाली सामग्री। यह खेल तो ऐसा है जिसमें कचड़ा भी महत्वपूर्ण बन गया है । जिससे बहुमूल्य मनोरंजन की अनुभूति खिलाड़ी सहज ही ले लेते हैं। चूड़ी से संबंधित लोक खेलों की व्युत्पत्ति उस काल से मानी जा सकती है जिस काल से चूड़ी का प्रचलन मानव जीवन में हुआ है । सांस्कृतिक एवं आर्थिक दृष्टिकोण से चूड़ियों की बिक्री का महत्वपूर्ण स्थान है किन्तु खेल के दृष्टिकोण से कोई भी स्थान नहीं है।

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