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Ritual Games

खेल की सम्पूर्ण जानकारी

फोदा और घरघुदिंया

  छत्तीसगढ़ की लोक संस्कृति में लोक खेलों की विविधता व्यापक रूप में है । विविधता के कारण ही ग्रामीण जीवन में मनोरंजन होता है । ग्रामीण, ग्रीष्म काल में गिल्ली डंडा से आनंद उठाते हैं तो वर्षा ऋतु में खीलामार, फल्ली या फिर गेंड़ी से । प्रत्येक लोक खेल स्वरूप, सामग्री या शैली के कारण एक दूसरे से पर्याप्त भिन्न होते हैं । ऐसे लोक खेलों की परम्परा भी विकसित हुई जिसका नाम एक ही है किन्तु खेलने की शैली में कुछ अंतर होते हैं जैसे बिल्लस, चूड़ी, गिल्ली-डंडा, बांटी व भौंरा में मिलते हैं।
'फोदा' और 'घरघुंदिया' दो ऐसे लोक खेल हैं जिनका ग्रामीण जन जीवन में एक नहीं बल्कि दो-दो स्वरूप प्रचलित है । दोनों ही स्वरूपों में ऋतु, सामग्री व शैली के दृष्टिकोण से पूर्णत: असमानता है । कहा जाय तो दूर -दूर तक दोनों में कुछ भी संबंध नहीं। फोदा और घरघुंदिया से संबंधित लोक खेल निम्नांकित दो वर्गो में बंटा हुआ है -
गीली मिट्टी से संबंधित
मनुष्य जन्म से पूर्व मां की कोख में खेलता है तो जन्मोपरान्त वंचित कैसे रह सकता है। मां के आंचल से खेला। चलने की प्रेरणा मिली तो जो वस्तु सामने मिली उसी से खेला। परिणामस्वरूप चूड़ी से संबंधित, लाठी से संबंधित, जैसे ही अनेकों लोक खेल आस्तित्व में आ गये । इसी क्रम में बच्चों ने गीली मिट्टी में भी मनोरंजन तलाश किये और कलान्तर में गीली मिट्टी से संबंधित दो खेल प्रचलित हो गये-
1. फोदा 2. घरघुंदिया
दोनों लोक खेलों के स्वरूप एक दूसरे से पृथक हैं किन्तु दोनों का संबंध वर्षा ऋतु से है। ग्रामीण बच्चे आज भी इस खेल से आनंद उठाते हैं । वर्षा ऋतु में इस खेल की लाकप्रियता आप ही आप बढ़ जाती है।

विपरीत मौसम से संबंधित

गीली मिट्टी से संबंधित लोक खेल "फोदा और घरघुंदिया" के विपरीत मौसम में भी पृथक स्वरूप लिए हुए लोक खेल की परम्परा विकसित हुए हैं जिसे ही विपरीत मौसम से संबंधित फोदा और घरघुंदिया लोक खेल कहा जा रहा है। इस श्रृंखला में दोनों ही खेल बच्चों से संबंधित है और दोनों ही सामग्री पर आधारित है।

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