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Ritual Games

खेल की सम्पूर्ण जानकारी

भरवा से संबंधित लोक खेल

  छत्तीसगढ़ी लोक खेलों की असीमित समृद्घ परम्परा में 'भरवा' से संबंधित खेलों का भी प्रचलन मिलता है। भरवा से सम्बंधित लोक खेलों का प्रचलन इस बात का प्रमाण है कि मनोरंजन प्रत्येक क्षण हर एक पहलु पर है। मात्र प्राप्त करने वालों में इच्छा हो । भरवा से जुड़े खेलों के कारण घास-फूस की भी लोक खेलों कि परम्परा में उपस्तिथि दर्ज हो जाती है जैसे पेड़,छाया,पानी,पत्थर के टुकड़े ,पुराने कपड़े, चूड़ी के टुकड़े आदि

'भरवा' एक जंगली घास है । गाँवों में खलिहान के दीवारों (भांडी) पर उक्त घास मिल जाती है। भरवा का पौधा बरसात में उगता है ,कुंवार -कार्तिक माह में सूखने लगता है। देखने में यह पौधा गन्ने की तरह होता है किन्तु उससे बहुत ही पतला व कमजोर होता है।

 

भरवा के छिलके का किनारा, पत्ती (ब्लेड) कि तरह धारदार होता है इसीलिए ग्रामीण महिलाएं , जचकी (छेंवारी) के समय बच्चा का 'नारफूल' को काटने में उपयोग करती आ रही हैं। भरवा का पौधा सुख जाता है तब कृषक उसका उपयोग खेत व खलिहान में झोपड़ी (खोंधरा) बनाने में करता है । भरवा से संबंधित खेलों के प्रचलन आदि से यह मानव समाज के लिए वरदान है किन्तु सावन-भादो में यदि पशु खा जाये तो अभिशाप बन जाता है। भरवा खाए हुए पशु को बचाया नहीं जा सकता। भरवा का अनेकानेक उपयोग ग्रामीण जीवन में होता होगा किन्तु लोक खेल के क्षेत्र में इससे सम्बंधित |

दो तरह के खेल मिलते है -
१. हस्त कला के रूप में , २. संडउवा ।

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