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Ritual Games

खेल की सम्पूर्ण जानकारी

गिल्ली से संबधित लोक खेल

 लगभग तीन से पांच इंच गोलाई व लंबाई की एक लकड़ी जिसके दोनों छोर नुकीले होते हैं, गिल्ली कहलाती है। गिल्ली एक दुर्लभ सामग्री है जो खिलाड़ियों को सहज में उपलब्ध नहीं हो पाती। पेड़ से लकड़ी काटना, फिर उल बनाना, हर खिलाड़ी के लिए सम्भव नहीं होता फिर भी यह खेल लोकप्रिय है। इसके खिलाड़ी, विशेष रूचि होने के कारण व्यवस्था कर ही लेते हैं या फिर अपने से ही जो संभव हो बनाकर खेल लेते हैं।

गिल्ली का खेल प्राचीन हैं किन्तु प्रमाण मिलता नहीं है। वर्तमान समय में भरतीय लोक संस्कृति में, गिल्ली लोक खेल के अनेकानेक स्वरूप मिलते हैं। केवल छत्तीसगढ़ प्रदेश में ही सात से अधिक स्वरूप का प्रचलन है। विकसित स्वरूप के अध्ययन से पुष्टि होती है कि गिल्ली लोक खेल की परम्परा हजारों वर्ष पुरानी है। जैसा कि कोई वृक्ष, जितना अधिक पुराना होता जाता है उतनी अधिक उसमें शाखाएं फूट पड़ती हैं।

 

गिल्ली लोक खेल की उत्पति किस स्थान पर, उनके किस स्वरूप से हुई है इसकी जानकारी अप्राप्त है। स्वरूपों की विविधताओं पर दृष्टि केन्द्रित करने से ज्ञात होता है कि गिल्ली सामग्री के दृष्टिकोण से स्वतंत्र नहीं है। उसके संपूर्ण स्वरूप में एक और सामग्री का प्रचलन मिलता है, वह है डंडा। गिल्ली का कोई भी स्वरूप हो उनमें डंडा की उपस्थिति अनिवार्य तथा उल्लेखनीय है। माना जाता है कि मानव ने डंडा को आदिम काल से ही प्रमुख हथियार के रूप में स्वीकार कर लिया था। स्वाभाविक रूप से पुरूष वर्ग अपने साथ डंडा लेकर ही चला करते थे। आज की तरह उस काल में भी लकड़ी के छोटे-छोटे टुकड़े पड़े रहते थे। लकड़ी के किसी छोटे से टुकड़े को डंडा से मारते हैं। यदि लकड़ी के एक किनारे पर चोट पड़ती है तो लकड़ी उपर की ओर उछल जाती है। डंडे की चोट से लकड़ी में उत्पन्न होने वाले उछाल ने ही मानव को अपनी ओर आकृष्ट किया होगा और गिल्ली लोक खेल का स्वरूप मानव समाज में स्थापित हो गया होगा। सम्भवत: स्थापना के प्रारम्भिक काल में गिल्ली खेल में दूरी की प्रधानता रही होगी। कौन, कितनी दूरी तक गिल्ली को मार सकता है ? या सुनिश्चित दूरी पर, गिल्ली को कितनी बार उछालकर या फिर मारकर ले जा सकता है ? जिस व्यक्ति द्वारा मारा गया गिल्ली सर्वाधिक दूरी पर जाता रहा होगा, वही अपने साथियों में श्रेष्ठ व सफलता के आनंद की अनुभूति प्राप्त कर गौरवान्वित होता रहा होगा। उल्लेखित गौरव ने ही असफल खिलाड़ियों को सर्वाधिक दूरी तक गिल्ली मारने हेतु प्रोत्साहित किया होगा। गिल्ली, लाठी से संबंधित खेल था इसलिए इसका प्रसार विभिन्न क्षेत्रों में शीघ्र ही हुआ और बालक, युवक व पुरषों में लोकप्रिय भी हो गया।

उदभव काल में गिल्ली की लम्बाई लगभग चार से सात इंच तक की और मोटाई एक इंच व्यास से भी कम रही होगी। दूसरे शब्दों में पतली लकड़ी के छोटे टुकड़े ही गिल्ली के रूप में उपयोग किये जाते रहे होंगे। लकड़ी का छोटा सा टुकड़ा जमीन पर रखकर, उसके एक किनारे को डंडे से मारकर उछाल दिया जाता रहा होगा। हवा में उछलते ही डंडे से फिर वार कर दूर तक पहूंचा दिया जाता रहा होगा।

गिल्ली का लकड़ी स्वरूप वर्षो तक प्रचलन में नहीं रहा होगा, क्योंकि इनके खिलाड़ियों ने श्रेष्ठ प्रदर्शन हेतु उत्साहित होकर गिल्ली में उल की कल्पना की होगी। लकड़ी के किसी छोर के नीचे गढ्ढा हो तो उक्त छोर को डंडे से मारने पर लकड़ी अच्छी तरह से उछल जाती है। उक्त आवश्यकता को ध्यान में रखकर, लकड़ी को जिस दिशा में उछालना है उस दिशा में लकड़ी के छोर के नीचे डंडे से खरोंचं कर गढ्ढा बनाने लगे होंगे। समतल एंव ठोस मैदान में मिट्टी को खरोंच कर गढ्ढा बनाना कठीन होता है, ऐसी परिस्थिति से जूझते हुए फिर किसी का मन उद्वेलित हुआ होगा। उन्होने मोटी लकड़ी के एक सिरे को छीलकर अपनी कल्पना को साकार किया होगा। तीन चार इंच व्यास वाली मोटी लकड़ी के एक सिरे को छील कर नोक का रूप दे दिया जिससे मिट्टी खरोंचने की आवश्यकता ही समाप्त हो गया। गिल्ली में उल होने से समतल स्थल में भी उछालना आसान हो गया। गिल्ली को उनके एक दो स्वरूप में, दाम के अवसर पर स्पर्श करना मना होता है। ऐसे समय पर गिल्ली का बिना छीला हुआ छोर सामने की ओर और उल पिछे की ओर तो स्थिति प्रतिकुल बन जाती है। गिल्ली को उछालकर सामने की ओर मारना कठिन हो जाता है। उक्त समस्याओं के समाधान हेतु गिल्ली के दोनों छोर को छीलकर उल बना दिया गया। इस तरह भारतीय लोक खेलों की संस्कृति मे गिल्ली का स्वरूप स्थापित हुआ जो वर्तमान समय में भी प्रचलित है।

ग्रामीण जन सरल एंव स्वतंत्र स्वभाव के होते हैं। उनका स्वभाव लोक खेलों में भी दिग्दर्शित होता है। उन्होंने गिल्ली की लम्बाई, मोटाई व वजन को कभी भी सीमा मे बांधा नहीं, इसी तरह डंडे का चुनाव भी कर लिया जाता है। लोक खेलों के रसिकों को बेर, कउहा, बबूल और तेंन्दू के पेड़ से उपयुक्त डंडे की प्राप्ति हो जाती है। खिलाड़ी बबूल के डंडे को सर्वोत्तम मानते हैं क्योंकि वह मजबूत और हल्का होता है। गिल्ली के लिए भी बबूल की लकड़ी को उचित मानते हैं।
छत्तीसगढ़ प्रदेश में प्रचलित सम्पूर्ण लोक खेलों में गिल्ली का स्थान प्रथम और महत्वपूर्ण है। इस भू-भाग में 7 से भी अधिक गिल्ली के स्वरूप विकसित हुए हैं, जो सामूहिक, एकल व दलीय तीनो ही श्रेणी मे सम्मिलित होते हैं। छत्तीसगढ़ के ग्रामीण जन-जीवन में इसकी लोक-प्रियता देखते बनती है, जब बच्चे व युवक झुण्ड के झुंड गिल्ली डंडा खेलते हुए पूरी दोपहर व्यतीत कर देते हैं। यह ग्रीष्म काल का खेल है और इस काल के प्रमुख खेलों में से एक भी है। गिल्ली के अधिकतम स्वरूप हेतु लंबे चौंड़े मैदान की आवश्यकता होती है, जो गांवो में उपलब्ध हो जाता है। मैदान के अभाव में खेत और खलिहान गिल्ली के लिए श्रेष्ठ स्थान होते हैं।

छत्तीसगढ़ की विशाल संस्कृति में इस खेल के साथ गीत का प्रचलन नहीं मिलता है। गिल्ली और डंडा लकड़ी का होता है इस दृष्टिकोण से इसे पेड़ से संबंधित लोक खेलों की श्रृखला में भी रखा जा सकता है। गिल्ली लोक खेल के सभी स्वरूप में खिलाड़ियों के लिए शारीरिक व मानसिक रूप से एक्सरसाईज अनिवार्य होती है।

गिल्ली और डंडा की इस लोक खेल के लिए छत्तीसगढ़ में कुछ शब्द का प्रचलन व प्रक्रिया प्रचलित है जो विभिन्न स्वरूप में देखने को मिल जाता है जैसे- समतल मैदान मे उछालने के लिए गिल्ली को जमाकर रखना, उल जमाना और जमे हुए गिल्ली के उल को डंडे से मारकर उछालना "उल कुदाना" कहलाता है। यदि गिल्ली तीव्र गति से उछलकर दूर तक जाती है तो उसे बडे उल,कम उछलता है तो छोटे उल और उछलने से वंचित होता है तो उसे "फूस" कहा जाता है। गिल्ली लोक खेल में "बढ़ा" शब्द का प्रचलन है। बढ़ो, बढ़ोही, बढ़ाथे, बढ़ागे और बढ़ोना जैसे शब्द का उच्चारण गिल्ली के खिलाड़ी करते हैं जिसका मूल अर्थ है मारना। इसी तरह हाथगोड़ की प्रक्रिया भी प्रचलित है। हाथगोड़ का उद्देश्य मात्र सजा स्वरूप है। इसकी प्रक्रिया इस तरह से है - पहले गिल्ली का उल जमा दिया जाता है। डंडा को अपने पीछे से ले जाकर दोनों पैर के अंदर से सामने ला दिया जाता है। गिल्ली की उल को मारता है। फिर डंडा को दोनों पैर के अंदर से बाहर निकाल कर उछले हुए गिल्ली को मार दिया जाता है। इस प्रक्रिया में यदि गिल्ली को अच्छे से चोट पड़ती है तो वह खिलाड़ी की विशेष योग्यता सिद्ध हो जाती है।

गिल्ली से संबंधित लोक खेलों के नाम :-

1. छिर्रा गिल्ली 2. दलीय गिल्ली 3. दौड़ गिल्ली 4. चिप्पी गिल्ली, 5. बदी गिल्ली या बुटईल 6. झोंकउल गिल्ली 7. बनउला।

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